मुशाफिर

ये अकेली काली रातें 
इस मुसाफ़िर को बहुत डराती हैं, 
पल - पल डसती हैं सांप की तरह, 
सोने जाओ तो सोने नहीं देती, 
सो जाओ तो सुबह होने नहीं देती, 
सपनों में आकर डराती हैं, 
जब दिल चाहें जगाती हैं,
जब दिल चाहें सुलाती हैं, 
किताबों को हाथों में लेने नहीं देती, 
और भविष्य का डर दिखाती हैं, 
बात करों किसी से तो, 
बातों को पूरा होने नहीं देती, 
किसी का होने नहीं देती,
लोगों की बातों से डराती हैं, 
अकेले होने का अहसास दिलाती हैं, 
ये अकेली काली रातें 
इस मुसाफ़िर को बहुत डराती हैं,
पल - पल हर - पल डराती हैं ...!
A silent person ✍️

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